prayagraj mahima

About Prayagraj

Prayagraj Mahima

को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ।
कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ॥
अस तीरथपति देखि सुहावा।
सुख सागर रघुबर सुखु पावा॥
* देखत स्यामल धवल हलोरे। पुलकि सरीर भरत कर जोरे॥
सकल काम प्रद तीरथराऊ। बेद बिदित जग प्रगट प्रभाऊ॥3॥
दशतीर्थ सहस्राणि तिस्र:कोट्यस्तथा परा:।
समागच्छंति माघ्यां तु प्रयागे भरतर्षभ।
माघमासं प्रयागे तु नियत:संशित व्रत: ।
स्नात्वा तु भरत श्रेष्ठ निर्मल: स्वर्गमाप्नुयात्।।
''प्रयागे माघमासे तु त्र्यहं स्नानस्य यत्फलम्।
नाश्वमेधसस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।।''
"माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्त पापास्त्रिदिवं प्रयान्ति।"
अर्थात माघ माह मे तीन दिन भी शीतल जल मे डुबकी लगाने से पाप कर्म से मुक्ति मिलती है |

तजि तीरथ हरि-राधिका-तन-दुति करि अनुराग।

जिहिं ब्रज-केलि निकुंज-मग पग-पग होत प्रयाग॥

त्रिवेणी माधवं सोमं भरद्वाजं च वासुकीम। 
वन्दे अक्षयवटं शेषं प्रयागं तीर्थनायकं।।
 
सकल कामप्रद तीरथराऊ। वेद विदित जग प्रगट प्रभाऊ।।

‘रेवा तीरे तप: कुर्यात मरणं जाह्नवी तटे।” 

अर्थात, तपस्या करना हो तो नर्मदा के तट पर और शरीर त्यागना हो तो गंगा तट पर जाएं। गंगा के तट पर प्रयागराज, हरिद्वार, काशी आदि तीर्थ बसे हुए हैं।

“प्रयागस्य पवेशाद्वै पापं नश्यति: तत्क्षणात्।” 

— प्रयाग में प्रवेश मात्र से ही समस्त पाप कर्म का नाश हो जाता है ।

माघ माहात्म्य :
माघमासे गमिष्यन्ति गंगायमुनसंगमे।
ब्रह्माविष्णु महादेवरूद्रादित्यमरूद्गणा:।।
अर्थात् ब्रह्मा, विष्णु, महादेव, रुद्र, आदित्य तथा मरूद्गण माघ मास में प्रयागराज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं।
प्रयागे माघमासे तुत्र्यहं स्नानस्य यद्रवेत्।
दशाश्वमेघसहस्त्रेण तत्फलं लभते भुवि।।
प्रयाग में माघ मास के अन्दर तीन बार स्नान करने से जो फल होता है वह फल पृथ्वी में दस हजार अश्वमेघ यज्ञ करने से भी प्राप्त नहीं होता है।
चौपाई :
* भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा॥
तापस सम दम दया निधाना। परमारथ पथ परम सुजाना॥1॥ 
भावार्थ:-भरद्वाज मुनि प्रयाग में बसते हैं, उनका श्री रामजी के चरणों में अत्यंत प्रेम है। वे तपस्वी, निगृहीत चित्त, जितेन्द्रिय, दया के निधान और परमार्थ के मार्ग में बड़े ही चतुर हैं॥1॥
 माघ मकरगत रबि जब होई। तीरथपतिहिं आव सब कोई॥
देव दनुज किंनर नर श्रेनीं। सादर मज्जहिं सकल त्रिबेनीं॥2॥ 
भावार्थ:-माघ में जब सूर्य मकर राशि पर जाते हैं, तब सब लोग तीर्थराज प्रयाग को आते हैं। देवता, दैत्य, किन्नर और मनुष्यों के समूह सब आदरपूर्वक त्रिवेणी में स्नान करते हैं॥।2॥
* पूजहिं माधव पद जलजाता। परसि अखय बटु हरषहिं गाता॥
भरद्वाज आश्रम अति पावन। परम रम्य मुनिबर मन भावन॥3॥
भावार्थ:-श्री वेणीमाधवजी के चरणकमलों को पूजते हैं और अक्षयवट का स्पर्श कर उनके शरीर पुलकित होते हैं। भरद्वाजजी का आश्रम बहुत ही पवित्र, परम रमणीय और श्रेष्ठ मुनियों के मन को भाने वाला है॥3॥
चौपाई :
* एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं। पुनि सब निज निज आश्रम जाहीं॥
प्रति संबत अति होइ अनंदा। मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृंदा॥1॥
भावार्थ:-इसी प्रकार माघ के महीनेभर स्नान करते हैं और फिर सब अपने-अपने आश्रमों को चले जाते हैं। हर साल वहाँ इसी तरह बड़ा आनंद होता है। मकर में स्नान करके मुनिगण चले जाते हैं॥1॥
 
 
 
Shyama jan Kalyan Sansthan

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